Saturday, September 22, 2012

VenuG Presents @ random ghazhal, Written by Shayar Mohsin Naqvi, Itni Muffat Baad Mile ho, Itni Muddat Baad Mile Ho, Kin Sochon Mein Ghum Rehte Ho sung by Ghulam Ali and Peenaz Masani

खवातीनों-ओ-हजरात
आदाब अर्ज़ है
पेशाह खिदमत है एक ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल
जिसको मेरी उम्र के हर ग़ज़ल फराज को यह ग़ज़ल दिल के काफी करीब होगी
और इसे सुनकर उस हर शक्स की आँखों में इश्क़ का वो ज़लज़ला जो जवानी के दिनों में रहा होगा,
आपे आप आ जाएगा
मूलहीजा फरमाइए हुज़ूर


~ग़ज़ल :~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~


पर, मुझे अब, जब भी यह ग़ज़ल सुनाई पढ़ती है, मुझे उस्ताद ग़ुलाम आली, का मुसकुराता चेहरा जहन में अनायास आ जाता है।




ग़ज़ल :~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~
शायर : मोहसीन नक़वी

गुलूकार : ग़ुलाम आली / पीनाज मसानी / तृशा बिशवास / दिलराज कौर / के वेणुगोपाल मेनॉन ( VenuG )

मौसिकुई : ग़ुलाम आली

मुलाहिजा फरमाएँ आज शब को यह उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल।


सच पूछे तो, इस ग़ज़ल को, मैं पहले उस फंकारा के गले से सुना, जिसे देख कर, मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगा, की यह इसे गा पाएँगी ! जी हाँ मैं बाद कर रहा हूँ फंकारा का नाम है, पीनाज मसानी , खूबसूरत , आमिर घराने से, और कपड़े पहनने का सलीका कोई उनसे सीखे।

पर, मुझे अब, जब भी यह ग़ज़ल सुनाई पढ़ती है, मुझे उस्ताद ग़ुलाम आली, का मुसकुराता चेहरा जहन में अनायास आ जाता है।

मैं उम्मीद करता हूँ, मेरी यह पेशकश, ग़ज़लों के शौकीनोन को पसंद आएगी।

मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~
अंतरा 1
~तेज़ हवा ने मुझसे पूछा~तेज़ हवा ने मुझसे पूछा~तेज़ हवा ने मुझसे पूछा~

~रेत पे क्या लिखते रहते हो~रेत पे क्या लिखते रहते हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~
Picture :                                            Footprints on Sand

Photgrapher:                                K. Venugopal Menon
Camera          :Nokia E63 2 Megapixel Phone Camera
Location:                                 Marina Beach, Chennai.
Date & Time:                  2 Nd March, 2011, 07:30 IST


मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

अंतरा 2
~कौन सी बात है तुम में ऐसी~कौन सी बात है तुम में ऐसी~कौन सी बात है तुम में ऐसी~

~इतने अच्छे क्यूँ लगते हो~इतने अच्छे क्यूँ लगते हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

अंतरा 3
~हुमसे न पूछो हिजरा के किस्से~हुमसे न पूछो हिजरा के किस्से~हुमसे न पूछो हिजरा के किस्से~

~अपनी कहो अब तुम कैसे हो~अपनी कहो अब तुम कैसे हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

आपको जानकारी के लिए अंतरा नंबर 4 और 5 खुद मैंने लिखे और जोड़ें हैं।

अंतरा 4 ( शायर VenuG )
~ऐसी नज़र से ना मुझको देखो~ऐसी नज़र से ना मुझको देखो~ऐसी नज़र से ना मुझको देखो~
~आईने में खुद तुम जचते हो~आईने में खुद तुम जचते हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

अंतरा 5 ( शायर VenuG )
~मेरी खुशी को तुम क्या जानो~मेरी खुशी को तुम क्या जानो~मेरी खुशी को तुम क्या जानो~
~साथ मेरे जब तुम रहते हो~साथ मेरे जब तुम रहते हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

मुखड़ा
~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~इतनी मुद्दत बाद मिले हो~कीन सोचों में गुम रहते हो~

खुदा आपको बरकत दे
और ऐसे ही मौसिकुई फनकार और शायर का साथ बख्शे
बंदे को अब इजाज़त दें आदाब :)
खुदा हाफ़िज़
शबबा खैर


उस्ताद ग़ुलाम आली द्वारा गया हुआ इस ग़ज़ल का विडियो

अगर आप उस्ताद ग़ुलाम आली की गयी हुई ग़ज़ल सुनेंगें, तो आप इन तीन चीजों को देखेंगे।

1 उनके ग़ज़ल गाने का अंदाज़ बिल्कुल अलहेद्ा है, उनके गाने में बिल्कुल ऐसा महसूस नहीं होता की वे अपने गले के साथ कोई ज़ोर-जबर्दस्ती कर रहें हैं! गाते-गाते कभी एकदम मुसकुराते हुए एक हरकत लेकर, शेर-ओ-शायरी के शौकीनों से आपे-आप वाह-वाही और तालियाँ चीन लेतीं हैं!

2 उनकी महफिल में, घजहाल-नफ़ीसों की भरमार होती है, फिर भी, ग़ज़ल गाते हुए वे कहीं अगर ग़ज़ल में किसी बात पर ज़ोर (स्ट्रैस) दे कर कोई बात काही हो तो उसे वे समझते है, जैसे "हवा नहीं तेज़ हवा है दोनों में फर्क है!" । उनकी महफ़िलों में ऐसे ऐसे लोग मैंने देखें हैं, जो मिर ताकि मीर, ग़ालिब, साहिर, फिराक, फाजली की ग़ज़लों की एक-एक बारीकी से वाकिफ हैं। इनमें, जयपुर के "श्रुति मण्डल के स्वर्गीय कौशल भार्गव, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय राम निवास मिरधा, राजस्थान पत्रिका के भूतपूरवा संपादक स्कार्गीय कोमल कोठारी (जो की भारत के माने हुये लोक काला माहिर थे) श्रीराम काला केंद्र के स्वर्गीय चरत राम थे, मैं भी उन में था। ग़ुलाम आली जी की गझल नवाज़ी ऐसी थी, की आशिक मिजाज लोक उंकेय ऐसे दीवाने थे की, बी आर चोपड़ा की फिल्म निकाह में, उनका गाना, चुपके चुपके रात दिन, और पियक्कड़ो को हुंगामा है क्यों बरपा, और सलमा आग़ा की ग़ज़लें समा भी है जवान जवान, और दिल के अरमान आंसुओं में बेह गए। उन दिनों, उमराओ जान, शहरयार की बाज़ार, गमन, साथ_साथ , घरौंदा, मौसम, आँधी, और नाम जैसी फिल्मों म, ग़ज़लों की भरमार हुआ करती थी। ग़ुलाम आली, रूना लैला, हरिहरन, भूपिंदर सिंह, हेमलता, सलमा आग़ा, तलत अज़ीज़, शबबीर कुमार, चन्दन दस, आशा भोसले, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, मनहार उधास और अनूप जलोटा, के गीत, ग़ज़लें और भजन हुआ करते थे। सन 1975-1985 का बॉलीवुड संगीत और मौसिकुई ग़ज़लों की तारीख में सोने-का-किला थी। 

3 उनकी ग़ज़ल गायकी में हरकत या मुरकी और पौसे या एक पल की रुकावट, एक अलग ही अंदाज़ था, यह दिल भी पागल दिल मेरा, चुपके-चुपके, पारा-पारा, हुंगामा है क्यूँ बरपा और इस ग़ज़ल में उसकी बहुत झलक मिलती है! जब वे गाते हैं "इतनी मुद्दत .। बाद मिले .। हो " "किन-सोचों-में-गुम-रहते-हो(हो पर एक सेकंड को घुमाव), " " टेने-अच्छे-क्यूँ-लगते..हो" इस ग़ज़ल में पौसे का बेहतरीन मजाहिरा किया है।

कैसा लगा मेरा तकसिरा? आपकी हौसला-अफजाई का हबूका हूँ, बड़ी मेहनत की है, इस ब्लॉग पर माइनें, सिर्फ आप लोगों से उस समय की याद दिलनी को, जो ग़ज़लों का स्वर्णिम युग था। आशा करता हूँ पसंद आयेगा। 

तृशा बिशवास द्वारा गया हुआ इस ग़ज़ल का विडियो

अब लीजिये इस बच्ची तृशा बिशवास की बात करें, तृशा ने यह विडियो 8 सितम्बर 2009 को अपलोड किया है,  इसी समय मैंने भी अपने घटिया विडियो अपलोड करें हैं यहाँ देखें!!!

http://www.youtube.com/user/TheVenuMusicRadioJAM/videos?sort=p&flow=grid&view=0

मेरे पहले 9 विडियो में 6 विडियो ऐसे हैं, जहां मैं गा रहा हूँ, और इन्हे 1474-8139 वीएस है। तृशा की इतनी बढ़िया गायकी का यह अनादर समज्था हूँ!!!

मेरा कहना है, की इस विडियो को सिर्फ 1434 लोगों ने सुना है, यह इस गायकी की तौहीन है!!!
जरूर सुने इसे!!!
तृशा तब 26 की थी अब 29 की, इस उम्र में, बच्ची में बहुत टैलंट है, मई चाहता हूँ की आप इस विडियो को देखें और पूरा सुनीं! क्यों? मेरा कहना है की, मुझे ऐसा अंदेशा है, की तृशा, क्लासिकी मौसिकुई सीखिए हुई है, और इस बच्ची ने इस ग़ज़ल को हू-ब-हू ग़ुलाम आली जी की नकल नहीं की है, पर इसे अपनी अलग शैली में गया है। "कितनी मुद-दत-बा-उद-मी-ले-हो" "किन-सो-चो-ऑन-में-घूम-रेह-तेन हो" यहाँ आवाज़ के घुमाव में जो बात है, आवाज़ एक बार भी नहीं टूटी, जैसे की घनी से तेल टपकता हो , बिल्कुल फ्लुइड, क्या आवाज़ है, मिथुन द की तरह कहना पड़ेगा, क्या बात क्या बात क्या बात! मैं चाहता हूँ आप इसको ज़रूर सुनें, शुक्रिया, मुझे मालूम है आप इतनी तारीफ के बाद सुनेंगे" VenuG प्रेसेंट्स तृशा बिस्वास, फ्राम रोचेस्टर , न्यू यॉर्क, तृशा बिस्वास" तालिया ।
दिलराज कौर द्वारा गया हुआ इस ग़ज़ल का विडियो
दिलराज कौर पुंजाबी और लोक गीतों की बहुत बढ़िया गायिका हैं, उन्होने पीतल की मेरी घाघरी, और यह उनकी गानों की फहईस्ट हैं,
http://www.in.com/music/artist/dilraj-kaur-7071-10.html

http://www.cduniverse.com/sresult.asp?HT_Search=SONGOGRAPHY&HT_Search_Info=Dilraj+Kaur

YouTube पर उनकी ग़ज़लों के कई विडियो है, पर मुझे इनमें मौसिकुई कुछ बोल्ल्य्वूड़ाना लगी, जैसे लक्ष्मीकांत-प्यारेलल या कल्याणजी-आनंदजी का वाइलिन वाला ऑर्केस्ट्रा अररंगेमेंट हो। इस लिए, मुझे तृशा का गया हुआ इस विडियो से अच्छा लगा। आप सुने और बताएं इन चारों में सबसे अच्छा कौन सा लगा? खैर आप बताएं उससे से पहले, मेरा सबसे खराब रहेगा :-)

पर मैं, यह कहना चाहूँगा, की विविध भर्ती पर, गैर-फिल्मी नघमो के कतयाकरम में, दोपहर दो से ढाई और रात 8 से साढ़े 8 तक, पीनाज मसानी द्वारा गयी यह ग़ज़ल मैंने कई बार सुनी है, अच्छा गाया है उन्होने, पर विडियो या औडियो नहीं मिला। मेरी विनती पवन झा जी से, जिन्हें मैं भारतीय संगीत का एङ्कय्क्लोपेडिया विकिपीडिया मानता हूँ @p1j हुज़ूर, पीनज मसान के विडियो का लिंक मिलेगा।? पिछली 10 फरमाइश में मुझे सकारात्मक उत्तर मिला, अब भी मिलेगा, ऐसा मेरा मानना है।

रेत पे क्या लिखते रहते हो? किन सोचों में गुम रहतें हो?
कितनी मुद्दत बाद यह ग़ज़ल सुनी!!!
बहुत मज़ा आया, इस ब्लॉग को पद्ध कर आप को पता चल गया होगा कितना
शबबा खैर
खुदा हाफ़िज़
आईटीआई वार्ताह

VenuG द्वारा गया हुआ इस ग़ज़ल का औडियो
Check out "VenuG Presents Itni Muddat Baad Mile Ho Ghazal written by Mohsin Rizvi" by VenGy -
http://www.reverbnation.com/open_graph/song/14630822
भाई मेरी ग़ज़ल बकवास है, वॉल्यूम कम है, पर मैंने दो अंतरे जोड़े है, शायर की दृस्टी से चाहूँगा की सुने या पढ़ें, और शेर के अलफाज और काफिये आर टिप्पणी करें, गायकी ठीक ही है, पर कुछ खास नहीं! :-)  

Picture :                          Washed Images & Footprints

Photgrapher:                          A Tender Coconut Seller
Camera          :Nokia E63 2 Megapixel Phone Camera
Location:                                 Marina Beach, Chennai.
Date & Time:                  2 Nd March, 2011, 07:30 IST
Subject:               Me the Narcissist! VenuG! Who else?

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